
अमेरिका के एक शीर्ष विद्वान ने भारत और अमेरिका के संबंधों में आई खटास की संभावित वजह का कारण बताते हुए कहा कि ट्रंप खुद को वैश्विकशांतिकार दिखाना चाहते हैं और इसी के चलते उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का श्रेय लेने की कोशिश की, लेकिन जब पीएम मोदी नेइससे इनकार किया और ट्रंप के नाम का नोबेल शांति पुरस्कार के लिए समर्थन नहीं किया तो ट्रंप इस बात को शायद निजी तौर पर ले गए और बुरामान गए.
किसी अन्य देश की नहीं कोई जरुरत
अमेरिकी शिक्षाविद् टेरिल जोंस ने कहा कि ‘ट्रंप की रणनीति दो पक्षों में बातचीत के लिए पहले बड़ी-बड़ी शर्तें लगाना और फिर उन्हें बातचीत के लिएमजबूर करना है और अभी भी वे यही कर रहे हैं।’ जोंस ने कहा कि ‘ट्रंप ने उम्मीद की थी कि पीएम मोदी भी उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामितकरेंगे, लेकिन जब पीएम मोदी ने ऐसा नहीं किया तो ट्रंप इस बात को दिल पर ले गए और इसी के चलते ट्रंप ने भारत पर टैरिफ लगाया.
प्रोफेसर टैरिल जोंस ने कहा कि ‘डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक नेता बनना चाहते हैं। न सिर्फ राजनीतिक, आर्थिक तौर पर बल्कि भू-राजनीतिक तौर पर भी. इसलिए उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का श्रेय लेने में बहुत जल्दबाजी की. जबकि प्रधानमंत्री मोदी से इससे इनकार करते रहेऔर उन्होंने कहा कि हमें पाकिस्तान से बातचीत के लिए अमेरिका या किसी भी अन्य देश की कोई जरूरत नहीं है.
निभा सकते है मध्यस्थता की भूमिका
जब ट्रंप चाहते थे कि पीएम मोदी नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनके नाम का समर्थन करें, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो ट्रंप ने इस बात को निजीतौर पर ले लिया. जब ट्रंप कोई बात निजी तौर पर ले लेते हैं तो वे उस पर प्रतिक्रिया देते हैं और उन्होंने कई मौकों पर कहा भी है कि टैरिफ शब्दइंग्लिश भाषा का सबसे सुंदर शब्द है. अमेरिकी शिक्षाविद् टेरिल जोंस ने ये भी कहा कि ‘अमेरिका, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात कर सकता है, अमेरिका रूस से भी बात कर सकता है, लेकिन हो सकता है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन इस पर ध्यान न दें, लेकिन भारत ऐसा देश है, जो दोनों देशों सेबात कर सकता है और दोनों देशों के नेता, भारत की बात को ध्यान से सुनेंगे. ऐसे में अगर कोई बड़ा देश है तो ये देश मध्यस्थता की भूमिका निभासकते हैं.