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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा दिया गया एक बयान राजनीतिक हलकों में बहस का विषय बन गया है। कर्नाटक में संभावित नेतृत्व बदलावसे जुड़े सवाल पर खड़गे ने कहा, “यह सब हाईकमान के हाथ में है। हाईकमान में क्या चल रहा है, यह कोई भी नहीं कह सकता।” हालांकि उन्होंने यहस्पष्ट नहीं किया कि ‘हाईकमान’ से उनका आशय किससे है।

बीजेपी का पलटवार: “हाईकमान कौन है?”
खड़गे के इस बयान पर बीजेपी ने त्वरित और तीखी प्रतिक्रिया दी। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने सोशल मीडिया पर लिखा, “कांग्रेस का हाईकमानभूत की तरह है—अनदेखा, अनसुना लेकिन हमेशा मौजूद।” उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि जब पार्टी अध्यक्ष खुद नहीं जानते कि हाईकमान कौन है, तो इससे कांग्रेस की नेतृत्वहीनता और आंतरिक भ्रम उजागर होता है।

कांग्रेस में ‘हाईकमान’ की परंपरा और विवाद
‘हाईकमान’ शब्द कांग्रेस में नया नहीं है। दशकों से यह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए इस्तेमाल होता रहा है, जिसमें ऐतिहासिक रूप से गांधी परिवारकी प्रमुख भूमिका रही है। विपक्षी दल लंबे समय से इस शब्द का उपयोग गांधी परिवार के प्रभाव को इंगित करने के लिए करते हैं। पंडित नेहरू सेलेकर इंदिरा, राजीव और अब सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी तक यह परंपरा बनी रही है।

कर्नाटक में जारी नेतृत्व संघर्ष की पृष्ठभूमि
खड़गे का बयान ऐसे समय आया है जब कर्नाटक कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद की चर्चाएं तेज़ हैं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्रीडी.के. शिवकुमार के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा की खबरें सामने आ चुकी हैं। माना जा रहा है कि खड़गे के इस बयान से वे खुद को इस विवाद से अलगकर, जिम्मेदारी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर डालना चाह रहे हैं।

विधायक का बयान
इस सियासी बहस में और इंधन तब मिला जब कर्नाटक के कांग्रेस विधायक एच.ए. इक़बाल हुसैन ने कहा कि आने वाले दो-तीन महीनों में डी.के. शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। उन्होंने शिवकुमार की मेहनत और रणनीति की सराहना करते हुए कहा कि हाईकमान को स्थिति की पूरीसमझ है और वह सही समय पर फैसला करेगा।

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