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केवल दुर्लभ मामलों में ही अपीलीय अदालत कर सकती है हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि अपीलीय अदालतें निचली अदालतों द्वारा दिए गए बरी करने के फैसलों में केवल उन्हीं मामलों मेंहस्तक्षेप कर सकती हैं, जहां निचली अदालत का दृष्टिकोण पूरी तरह असंगत हो या जहां उपलब्ध साक्ष्य केवल दोषसिद्धि की ओर ही ले जाते हों।न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने शुक्रवार को यह टिप्पणी एक दहेज हत्या मामले से जुड़ी अपील को खारिज करते हुएकी।

निचली अदालत के फैसले में कोई कानूनी त्रुटि नहीं
अदालत ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष संभावित और साक्ष्य आधारित हैं, तो शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप नहीं करनाचाहिए। न्यायालय ने माना कि जिस फैसले को चुनौती दी गई है, उसमें ट्रायल कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट दोनों ने पूरी तरह विचार करने के बादआरोपी को बरी किया है और निर्णय में कोई कानूनी खामी नहीं है।

क्या था पूरा मामला?
यह मामला अक्टूबर 2010 में गाजियाबाद में हुई एक महिला, सुचिता सिंह, की आत्महत्या से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उनकीबहन को दहेज की मांग को लेकर लगातार प्रताड़ित किया गया, जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली। 2014 में ट्रायल कोर्ट ने महिला के पतिअजीत सिंह और उनके चार परिजनों को आरोपों से बरी कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अक्टूबर 2024 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकराररखा।

एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी बनी संदेह का कारण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि घटना के चार दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई, जिससे आरोपों की सत्यता पर संदेह उत्पन्न होता है। ट्रायलकोर्ट के अनुसार, इस देरी से यह प्रतीत होता है कि एफआईआर में दर्ज कहानी बाद में बनाई गई थी।

मृतका के पिता की मौजूदगी में हुई थी जांच
शीर्ष अदालत ने यह भी बताया कि मृतका के पति ने घटना के तुरंत बाद मायके वालों को सूचना दी थी, और मृतका के पिता, जो पुलिस उपाधीक्षकके पद पर थे, उनकी मौजूदगी में ही जांच और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गई थी। इसके बावजूद, उस समय किसी भी प्रकार की आपत्ति यासंदेह प्रकट नहीं किया गया।

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