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नई दिल्ली में 27 जून को दिल्ली भाजपा युवा मोर्चा द्वारा आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक विशेष मॉक पार्लियामेंट का आयोजनकिया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में हुआ, जिसमें केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और दिल्ली भाजपा अध्यक्षवीरेंद्र सचदेवा ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और आपातकाल पर आधारित प्रदर्शनी के अवलोकन सेहुई। विभिन्न कॉलेजों के छात्रों ने इस मॉक पार्लियामेंट में हिस्सा लिया और आपातकाल के इतिहास व उसके प्रभावों को समझा।

दिल्ली भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष सागर त्यागी ने अपने स्वागत भाषण में आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक काला अध्यायबताया और कहा कि आज की युवा पीढ़ी को इसके बारे में जानना जरूरी है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने अपने संबोधन में कहा कि यहआयोजन इसलिए जरूरी है ताकि युवा यह समझ सकें कि किस तरह कांग्रेस सरकार ने सत्ता बचाने के लिए संविधान और मौलिक अधिकारों का गलाघोंट दिया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान सत्ता की भूख में कई लोगों की आजादी और जान जोखिम में पड़ी। उन्होंने युवाओं से मोबाइलकी लत से निकलकर देशसेवा की भावना अपनाने की अपील की और लालच से बचने का संदेश एक रोचक कथा के माध्यम से दिया।

केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि आपातकाल केवल एक राजनीतिक संकट नहीं था, बल्कि यह आम नागरिकों की स्वतंत्रता औरजीवनशैली पर सीधा हमला था। उन्होंने कहा कि उस समय संविधान में किए गए संशोधनों विशेष रूप से 38वां, 39वां और 42वां संशोधन नेन्यायपालिका की शक्ति और नागरिक अधिकारों को खत्म करने का प्रयास किया। उन्होंने सवाल उठाया कि कांग्रेस ने आज तक देश से माफी क्योंनहीं मांगी, जबकि उस दौरान संविधान को इस हद तक दबा दिया गया था कि अगर किसी की जान भी चली जाए तो अदालत से भी कोई राहत नहींमिल सकती थी।

जयशंकर ने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग आज संविधान की प्रति हाथ में लेकर घूमते हैं, वे असल में उसकी आत्मा को नहींसमझते। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1975 में इमरजेंसी का विरोध करने वाले कुछ लोग आज उन्हीं दलों के साथ खड़े हैं जिन्होंने इमरजेंसी लागूकी थी। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी की जड़ में केवल एक बात थी “किस्सा कुर्सी का”। उन्होंने बताया कि उस समय भय का माहौल पुलिसिया दमन केजरिए बनाया गया था, जिससे छात्रों से लेकर दुकानदार तक सभी डर के साए में जीते थे।

अपने संबोधन के अंत में जयशंकर ने छह महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया पहला, लोकतंत्र भारत के डीएनए में है, इसलिए जनता के दबाव मेंचुनाव कराना पड़ा; दूसरा, परिवारवाद लोकतंत्र को कमजोर करता है; तीसरा, देश की छवि विदेश में बिगाड़ने वालों से सतर्क रहना चाहिए; चौथा, नागरिकों को सशक्त बनाना आवश्यक है ताकि वे इमरजेंसी जैसी स्थिति को रोक सकें; पांचवा, राष्ट्रभक्ति की भावना होनी चाहिए, जैसा ‘ऑपरेशनसिंदूर’ के बाद देखा गया; और छठवां, इमरजेंसी को केवल इतिहास की घटना न मानें, क्योंकि आज भी ऐसे लोग हैं जिन्हें उस समय पर कोई पछतावानहीं है।

इस आयोजन का उद्देश्य था युवाओं को यह समझाना कि लोकतंत्र की रक्षा केवल भाषणों से नहीं होती, बल्कि उसके मूल्यों को समझना और संकटके समय उसके पक्ष में खड़ा होना भी उतना ही जरूरी है। मॉक पार्लियामेंट जैसे कार्यक्रम नई पीढ़ी को भारत के संवैधानिक इतिहास और लोकतंत्र कीकीमत का बोध कराने की दिशा में एक प्रभावी कदम हैं।

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